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7.31.2011

आपका ब्लॉग पर आकार मेरे मित्र सवाई सिंह को जन्मदिन पर शुभकामनाएं और बधाई दी उसके लिए आभारी हूं

हेल्लो दोस्तों  12 जुलाई को  मेरे प्रिय दोस्त ओर भाई सवाई  सिंह राजपुरोहित का जन्मदिन था इस अवसर पर एक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था इस प्रतियोगिता मेरे पास 27 रचना आई जिसमे से 5 रचना को चुना है उसमे से एक रचना आज आपके सामने लेकर आया हु बाकि 4 रचना भी बहुत जल्दी आपके सामने लेकर आहूगा और जो रचना प्रथम स्थान पर आई है उसका नाम मैं 15 अगस्त को बताया जाएगा और उसको एक प्रमाण पत्र भी दिया जायेगा!

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आपका ब्लॉग पर आकार मेरे मित्र सवाई सिंह को जन्मदिन पर शुभकामनाएं और बधाई दी उसके लिए आभारी हूं उम्मीद है आप हमेशा ही उत्साहवर्धन करते रहेंगे आपका हृदय से बहुत बहुत आभार!...... सोनू 

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ये रचना आदरणीय शालिनी कौशिक जी  ने भेजी है
दोस्ती - एक प्रतियोगिता हैं. 
''तुम्हारे दर पर आने तक बहुत कमजोर होता हूँ.
मगर दहलीज छू लेते ही मैं कुछ और होता हूँ.''

        ''अशोक 'साहिल'जी की  ये पंक्तियाँ कितनी अक्षरशः खरी उतरती हैं दोस्ती जैसे पवित्र शब्द और भावना पर .दोस्ती वह भावना है जिसके बगैर यदि मैं कहूं कि एक इन्सान की जिंदगी सिवा तन्हाई के कुछ नहीं है तो शायद अतिश्योक्ति नहीं होगी.ये सत्य है कि एक व्यक्ति जो भावनाएं एक दोस्त के साथ बाँट सकता है वह किसी के साथ नहीं बाँट सकता.दोस्त से  वह अपने सुख दुःख बाँट सकता है ,मनोविनोद कर सकता है.सही परामर्श ले सकता है.लगभग सभी कुछ कर सकता है.मित्र की रक्षा ,उन्नति,उत्थान सभी कुछ एक सन्मित्र पर आधारित होते हैं -
''कराविव शरीरस्य नेत्र्योरिव पक्ष्मनी.
                                        अविचार्य प्रियं कुर्यात ,तन्मित्रं मित्रमुच्यते..''                                                                                                            
अर्थार्त जिस प्रकार मनुष्य के दोनों हाथ शरीर की अनवरत रक्षा करते हैं उन्हें कहने की आवश्यकता नहीं होती और न कभी शरीर ही कहता है कि जब मैं पृथ्वी पर गिरूँ तब तुम आगे आ जाना और बचा लेना ;परन्तु वे एक सच्चे मित्र की भांति सदैव शरीर की रक्षा में संलग्न रहते हैं इसी प्रकार आप पलकों को भी देखिये ,नेत्रों में एक भी धूलि का कण चला जाये पलकें तुरंत बंद हो जाती हैं हर विपत्ति से अपने नेत्रों को बचाती हैं इसी प्रकार एक सच्चा मित्र भी बिना कुछ कहे सुने मित्र का सदैव हित चिंतन किया करता है..
   दोस्त कहें या मित्र बहुत महत्वपूर्ण कर्त्तव्य निभाते हैं ये एक व्यक्ति के जीवन में .एक सच्चा मित्र सदैव अपने मित्र को उचित अनुचित की समझ देता है वह नहीं देख सकता कि उसके सामने उसके मित्र का घर बर्बाद होता रहे या उसका साथी कुवास्नाएं और दुर्व्यसनो का शिकार बनता रहे .
   तुलसीदास जी ने मित्र की जहाँ और पहचान बताई है वहां एक यह भी है -
  '' कुपंथ निवारी सुपंथ चलावा ,
                                             गुण प्रगटही अवगुनही बुरावा .''
तात्पर्य यह है कि यदि हम झूठ बोलते हैं ,चोरी करते हैं,धोखा देते हैं या हममे इसी प्रकार की बुरी आदतें हैं तो एक श्रेष्ठ मित्र का कर्त्तव्य है कि वह हमें सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे.हमें अपने दोषों के प्रति जागरूक कर दे .तथा उनके   दूर करने का निरंतर प्रयास करता रहे .
विपत्ति का समय ऐसा होता है कि न चाहकर भी व्यक्ति सहारे की तलाश में लग जाता है.निराशा  के  अंधकार में सच्चा मित्र ही आशा की किरण होता है .वह अपना सर्वस्व अर्पण कर भी अपने मित्र की सहायता करता  है .रहीम ने लिखा है-
''रहिमन सोई मीत है भीर परे ठहराई,
मथत मथत माखन रहे वही मही बिलगाई .''
मित्रता के लिए तो कहा ही ये गया है कि ये तो मीन और नीर जैसी होनी चाहिए ;सरोवर में जब तक जल रहा तब तक मछलियाँ क्रीडा और मनोविनोद करती रही परन्तु जैसे जैसे तालाबपर विपत्ति आनी आरम्भ हुई मछलियाँ उदास रहने लगी  और पानी ख़त्म होते होते उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए ये होती है मित्रता जो मित्र पर आई विपत्ति में उससे अलग नहीं हो जाता बल्कि उसका साथ देता   है.तुलसीदास जी ने सच्चे मित्र की कसौटी विपत्ति ही बताई है -
''धीरज धर्म मित्र अरु नारी,आपद कल परखिये चारी .
जे न मित्र दुःख होंहि दुखारी, तिन्ही विलोकत पातक भारी''
 इसीलिए संस्कृत में कहा गया है कि ''आपद्गतं च न जहाति ददति काले ''अर्थात विपति के समय सच्चा मित्र साथ न नहीं छोड़ता .
        मित्र का कर्त्तव्य है कि वह अपने मित्र के गुणों को प्रकाशित करे जिससे कि उसके गुणों का प्रकश देश समाज में फैले न कि उसके अवगुणों को उभरे जिससे उसे समाज में अपयश का सामना करना पड़े.वह मित्र के गुणों का नगाड़े की चोट पर गुणगान करता है और उन अवगुणों को दूर करने का प्रयास करता है जो उसे समाज में अपमान व् अपयश देगा .तुलसीदास जी कहते हैं-
''गुण प्रकटहिं ,अवगुनही दुरावा ''
 अथवा
''गुह्यानि गूहति गुणान प्रकति करोति  ''
    आज के  बहुत से मित्र मित्रता के नाम पर कलंक हैं और यदि यह कहा जाये कि वे स्वार्थी हैं तो शायद अतिश्योक्ति नहीं होगी.वे अपने स्वार्थ के लिए अपने मित्र को गलत कार्य के लिए उकसाते हैं और चने के झड पर चढ़ा कर अर्थात जो वह नहीं है वह होने का विश्वास दिला कर उससे गलत काम कराते हैं ऐसे मित्रों को यदि ''चापलूस शत्रु ''की संज्ञा दी जाये तो गलत नहीं होगा ऐसे भी प्रमाण हैं कि आज तक यदि किसी वीर की मृत्यु हुई  या वह किसी बंधन में फंसा तो मित्र के द्वार ही .
उर्दू का एक शेर है जो इसी प्रसंग पर प्रकाश डालता है-
खाके जो तीर देखा कमीगाह की तरफ ,
अपने ही दोस्तों से मुलाकात हो गयी.
   कमीगाह उस स्थान को कहते हैं जहाँ से छुप कर तीर चलाया जाता है.पीछे से किसी ने तीर चलाया पीठ में आकर लगा भी ,दर्द हुआ ,पीछे मुड़कर कमीगाह की तरफ जब देखा तो वहां कोई अपना ही दोस्त बैठा हुआ यह तीरंदाजी करता हुआ दिखाई दिया.इसीलिए ऐसे मित्रों को मित्र की श्रेणी  में ही नहीं रखते .
मित्र के निम्न लक्षण होते हैं जिन्हें भृत हरि ने एक श्लोक में लिखा है-
''पापन्निवार्यती  ,योज्यते हिताय ;
गह्यानी गूहति,गुणान प्रगति करोति .''
आपद्गतं च न जहाति ,ददाति काले ,
सन्मित्र लक्ष्नामिदम प्रवदन्ति सन्तः.''
अर्थात जो बुरे मार्ग पर चलने से रोकता है हितकारी कामों में लगता है,गुप्त बातों को छिपाता है तथा गुणों को प्रगट करता है आपति के समय साथ नहीं छोड़ता .
मित्र को यदि वह  मित्र संबंधों में स्थायित्व चाहता है तो ध्यान रखना चाहिए कि वह मित्र से कभी वाणी का विवाद न करे ,पैसे का सम्बन्ध भी अधिक न करें,तथा मित्र की पत्नी से कभी परोक्ष में संभाषण न करे,अन्यथा मैत्री सम्बन्ध चिरस्थायी नहीं रह सकते जैसा कि इस श्लोक में कहा गया है-
''यदिछेत विपुलाम प्रीती ,त्रीणि तत्र न कारयेत .
वाग्विवादोंअर्थम् सम्बन्धः एकान्ते दार भाषणम .''
इस   सम्बन्ध में महाकवि बिहारी की  उक्ति भी प्रशंसनीय है-
''जो चाहो चटक न घटे ,मिलो होए न मित्त ,
राजू राजसु न छुवाइए नेह चीकने चित्त .
                  Shalini Kaushik  
अंत में :- मेरे प्यारे दोस्तों आप सभी का बहुत बहुत आभार इतनी अच्छी रचनाऐ  भेज ने के लिए!

33 टिप्‍पणियां:

  1. ''धीरज धर्म मित्र अरु नारी,आपद कल परखिये चारी .
    जे न मित्र दुःख होंहि दुखारी, तिन्ही विलोकत पातक भारी''

    ....Maine to ab tak yahi dekha hai ki aapaada ke samay NAARI hi kisi bhi ghar mein sabse jyada kaam aati hai... Aaj ke samay mein naari ko parkhane kee baat aprasangik ho chali hai.. ..
    baaki mitra samanbhi prastuti bahut achhi lagi...
    Sabhi rachana bhejne walon ko meri or se bhi haardik shubhkamna..

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  2. सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. आद.शालिनी कौशिकजी
    बहुत सुंदर रचना बाधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरे पोस्ट पर आने और टिप्पणी करने के लिए आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. आद.शालिनी कौशिकजी
    आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है

    जवाब देंहटाएं
  6. सोनू जी इसी तरह बाकि रचनाओं का इंतजार रहेगा ।

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  7. सोनू जी
    आभार,
    ब्लॉग पर आने,रचना को पढ़ने एवं साथ ही साथ टिप्पणी करने हेतु भी

    जवाब देंहटाएं
  8. आद.शालिनी कौशिकजी
    बहुत सुंदर रचना के लिए बाधाई आपको
    सोनू जी
    आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. दोस्ती - एक प्रतियोगिता हैं.
    ''तुम्हारे दर पर आने तक बहुत कमजोर होता हूँ.
    मगर दहलीज छू लेते ही मैं कुछ और होता हूँ''


    बहुत ही सुन्दर लिखा है!

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  10. बहुत सुंदर रचना ! लाजवाब प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  11. नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    हे मनुष्यों हमें अपना मित्र बनाओ
    http://rajpurohitagra.blogspot.com/2011/08/blog-post_02.html

    http://rajpurohitagra.blogspot.com/2011/08/blog-post.html

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  12. आदरणीया कविता रावतजी आपकी बात सही है आज के समय में नारी को परखने की बात अप्रासंगिक हो चली है
    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  13. योगेंद्राजी आपका तहेदिल से शुक्रिया मेरे ब्लॉग पे आने के लिए.
    टिप्पणी के लिए आपका धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  14. प्रिय सवाई जब कोई सफलता ,कोई चीज़ पहली बार मिलती हैं तो कितना अच्छा लगता हैं मुझे भी ऐसी सफलता अभी तक नहीं मिली है और आपका ई मेल पढ़कर मुझे बहुत ख़ुशी हुई.और आपकी हर कोशिश पर मेरी शुभकामनायें आपके साथ है

    Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…"आद.शालिनी कौशिकजी
    आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है
    सोनू जी इसी तरह बाकि रचनाओं का इंतजार रहेगा"

    इतनी अच्छी और खूबसूरत प्रशंसा के लिए आपका बहुत - बहुत शुक्रिया,

    जवाब देंहटाएं
  15. आदरणीया एस पी सिंहजी आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और मेरे ब्लॉग के समर्थक (Followers) बने और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!

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  16. सही कहा की "दोस्ती - एक प्रतियोगिता हैं".
    मैं भी मानता हूँ की दोस्ती - एक प्रतियोगिता ह आपकी ये रचना सही है लिखी है आद.शालिनी कौशिकजी इस लिए बधाई स्वीकारें!

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  17. आपको और आपके परिवार को हरियाली तीज के शुभ अवसर पर बहुत बहुत शुभकामनायें

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  18. आदरणीय बबलीजी
    आदरणीय राजवीर सिंहजी
    आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी!

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  19. बहुत सुंदर रचना के लिए शुभकामनायें....

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  20. "आद.शालिनी कौशिकजी
    बहुत सुंदर रचना के लिए शुभकामनायें!!

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  21. बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ/ शुभकामनायें!!

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  22. बहुत ही रोचक प्रस्तुतीकरण |
    मेरी नयी प्रविष्टि पर आपका स्वागत है |

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  23. मित्रवर्यस्‍य गतजन्‍मदिवसस्‍य शुभकामना:

    सरसा रचनाया: कृते हार्दिकम् अभिनन्‍दनम्

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  24. गहन और सकारातमक सोच से भरपूर रचना ....बहुत अच्छी लगी

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  25. आदरणीय श्रीडॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी
    ब्लॉग में शामिल होने पर शुक्रिया
    और
    आदरणीयशिखा कौशिकजी
    ब्लॉग में शामिल होने पर शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  26. आदरणीय श्री डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी

    आदरणीय श्री सुनील कुमार जी

    आदरणीय Acupressureindiaजी

    आदरणीय शिखा कौशिकजी

    आदरणीय शालिनी जी

    आदरणीय अवनीश सिंह जी

    आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद बस यही आशीष हमेशा मिलता रहे!!

    जवाब देंहटाएं
  27. आदरणीयZEALजी

    आदरणीय SANSKRITJAGAT जी

    आदरणीय संजय भास्कर जी

    आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी!!

    जवाब देंहटाएं
  28. आपको भी फ्रेंडशिप डे की बहुत – बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  29. आदरणीय श्री कुंवर कुसुमेशजी
    आपकी बात से सहमत हु!
    आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी!!

    जवाब देंहटाएं

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